Rashmi Saluja Religare रश्मि सलूजा और रेलिगेयर: ईडी की जांच में नए खुलासे

रेलिगेयर एंटरप्राइजेज लिमिटेड (आरईएल) की कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. रश्मि सलूजा और कंपनी के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर ने कॉरपोरेट जगत में हलचल मचा दी है। यह मामला डाबर ग्रुप के बुरमन परिवार द्वारा रेलिगेयर का नियंत्रण हासिल करने की कोशिशों से जुड़ा हुआ है।

मुख्य घटनाक्रम

ईडी ने मुंबई के माटुंगा पुलिस स्टेशन में 6 सितंबर, 2024 को एक एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें रश्मि सलूजा, ग्रुप सीएफओ नितिन अग्रवाल, ग्रुप प्रेसिडेंट और जनरल काउंसल निशांत सिंघल, और एक निजी व्यक्ति वैभव गवली को आरोपी बनाया गया है। इस एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि इन लोगों ने बुरमन परिवार के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने की साजिश रची थी।

Rashmi Saluja के खिलाफ क्या सबूत मिले

रश्मि सलूजा और रेलिगेयर एंटरप्राइजेज के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा की गई जांच में कुछ महत्वपूर्ण सबूत सामने आए हैं:

  1. ईडी ने आरोप लगाया है कि सलूजा और अन्य अधिकारियों ने एक व्यक्ति वैभव गवली को 2 लाख रुपये दिए, जिसमें से 1.20 लाख रुपये का उपयोग रेलिगेयर के 500 शेयर खरीदने के लिए किया गया और शेष 80,000 रुपये बुरमन परिवार के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने के लिए दिए गए
  2. यह कथित साजिश रेलिगेयर पर बुरमन परिवार के नियंत्रण को रोकने और सलूजा तथा अन्य अधिकारियों के कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना (ईएसओपी) शेयरों की रक्षा करने के लिए रची गई थी
  3. ईडी ने सलूजा और अन्य अधिकारियों के लगभग 179.5 करोड़ रुपये मूल्य के ईएसओपी शेयरों को फ्रीज कर दिया है। ईडी का आरोप है कि इन शेयरों को बहुत कम कीमत पर हासिल किया गया था
  4. गवली ने पूछताछ के दौरान स्वीकार किया कि उसके पास अपने आरोपों के समर्थन में कोई दस्तावेज या सबूत नहीं थे और उसने एफआईआर सलूजा और अन्य रेलिगेयर अधिकारियों के निर्देश पर दर्ज कराई थी
  5. मुंबई पुलिस ने सलूजा, ग्रुप सीएफओ नितिन अग्रवाल और ग्रुप के जनरल काउंसल निशांत सिंघल के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र के आरोप में एफआईआर दर्ज की है

इन सबूतों के आधार पर, ईडी ने सलूजा और अन्य अधिकारियों पर बुरमन परिवार को झूठे तौर पर फंसाने और रेलिगेयर पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है।

ईएसओपी विवाद

जांच में पता चला है कि सलूजा और अन्य अधिकारियों के पास लगभग 179.5 करोड़ रुपये मूल्य के ईएसओपी शेयर हैं। ईडी का आरोप है कि इन शेयरों को बहुत कम कीमत पर हासिल किया गया था और इसके लिए रेलिगेयर के फंड का दुरुपयोग किया गया

बुरमन परिवार को क्लीन चिट

ईडी ने अपनी जांच में डाबर ग्रुप के प्रमोटर बुरमन परिवार को क्लीन चिट दे दी है। 2023 में बुरमन परिवार के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर को अब संदिग्ध माना जा रहा है।

रेलिगेयर का पक्ष

रेलिगेयर ने स्टॉक एक्सचेंजों को दी गई सूचना में कहा है कि संबंधित अधिकारियों ने एफआईआर में लगाए गए आरोपों से इनकार किया है और वे इस मामले की जांच कर रहे हैं। कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया है कि एफआईआर में कंपनी के खिलाफ कोई आरोप नहीं है।

पिछला घटनाक्रम

अगस्त 2024 में, ईडी ने दिल्ली और गुरुग्राम में रेलिगेयर से जुड़े चार परिसरों पर छापेमारी की थी। इस दौरान सलूजा, अग्रवाल और सिंघल के ईएसओपी शेयरों को फ्रीज कर दिया गया था।

मामले का महत्व

यह मामला कॉरपोरेट गवर्नेंस और नियामक निगरानी के मुद्दों को उजागर करता है। यह रेलिगेयर जैसी बड़ी वित्तीय कंपनियों में नियंत्रण के लिए चल रही प्रतिस्पर्धा को भी दर्शाता है।

विश्लेषण

  1. कॉरपोरेट प्रतिस्पर्धा: यह मामला दिखाता है कि बड़ी कंपनियों में नियंत्रण हासिल करने के लिए किस हद तक जाया जा सकता है। बुरमन परिवार और मौजूदा प्रबंधन के बीच टकराव स्पष्ट है।
  2. नियामक भूमिका: ईडी की सक्रिय भूमिका यह दर्शाती है कि नियामक संस्थाएं कॉरपोरेट क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों पर पैनी नजर रख रही हैं।
  3. शेयरधारकों के हित: इस पूरे प्रकरण में शेयरधारकों के हितों की रक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। कंपनी के प्रबंधन और संभावित खरीदार, दोनों को ही इस पहलू पर ध्यान देना होगा।
  4. कानूनी जटिलताएं: मामले में कई कानूनी पहलू हैं, जिनमें कॉरपोरेट कानून, प्रतिभूति कानून और आपराधिक कानून शामिल हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय इन जटिलताओं को कैसे सुलझाते हैं।
  5. ईएसओपी का मुद्दा: कर्मचारी स्टॉक विकल्पों के उचित उपयोग और दुरुपयोग का मुद्दा इस मामले में केंद्रीय है। यह अन्य कंपनियों के लिए भी एक सबक हो सकता है।

आगे की राह

इस मामले की न्यायिक जांच अभी बाकी है। यह देखना होगा कि अदालतें इस मामले को कैसे देखती हैं और क्या फैसला देती हैं। इस बीच, रेलिगेयर और उसके शेयरधारकों के लिए यह एक चिंता का विषय बना हुआ है।निवेशकों और नियामकों की नजर इस मामले पर टिकी हुई है। यह केस भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों को भी उजागर करता है।

निष्कर्ष

रश्मि सलूजा और रेलिगेयर का यह मामला भारतीय कॉरपोरेट जगत में एक महत्वपूर्ण घटना है। यह न केवल एक कंपनी की आंतरिक गतिविधियों को दर्शाता है, बल्कि पूरे वित्तीय क्षेत्र में नियंत्रण और प्रबंधन के मुद्दों को भी सामने लाता है। आने वाले समय में इस मामले के और भी कई पहलू सामने आ सकते हैं, जो न केवल रेलिगेयर बल्कि पूरे कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

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